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एक नदी थी / जियाउर रहमान जाफरी
Kavita Kosh से
खोज रहा था बादल आकर
यहीं कहीं पर एक नदी थी
यहीं कहीं पर थी एक बस्ती
यहीं कहीं बरसात हुई थी
लगता था ये सागर जैसा
पानी खूब उछल जाता था
रुक जाता था देखने लहरें
जल तब कैसे लहराता था
यहीं कहीं कुछ पेड़ घने थे
थका मुसाफिर रुक जाता था
ठंड हवा यों जल को छूकर
सबको शीतल कर जाता था
नहीं नदी में पानी है अब
बालू, मिट्टी धूल फ़क़त है
ऊपर जर्जर पूल पड़ा है
लिखा पुराना जैसे ख़त है