भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसो जीव जाल पचिहारो / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
ऐसो जीव जाल पचिहारो।
रच-रच रहो गही न मारग काम क्रोध काया मतवारो।
नाहक भार मरो माया की वन-वन फिरो भार नहिं डारो।
नहिं जानत कब काल झपाटे जैसे बाज लवा को मारो।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें, फिर-फिर जगत जाल में डारो।