भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कउन उलका उगल / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कउन उलका उगल मन के अकास में
बिख घोरऽ हइ अंतस पियास में

ध्यान केकरो न´ इन्सानी लोर पर
कइंटी पर कइंटी मानवा के ठोर पर
खून रंगल दुनिया हे बदहवास में

दागे दाग मन हे लुरेठल जहाऽ
स्वाभिमानी पर काछा लेसरल यहाँ
मीठ जहर के लहर सगर सब रास में

खोजे जिनगी के कोर न´ किनारा
बेहोशी में पइरे हे नित बीच धारा
बिगुल बजावऽ हे छुप-छुप नाश के

कोय केकरे न´ सुने कोय बात के
सुरूज छइते पहरा घुप्प रात के
पूछ ओकरे जेकर गइंठ दाम पास में।