भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कजली / 70 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
झूले की
धीरे धीरे झुलाओ बिहारी,
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना! 1॥टे।॥
छतियाँ मोरी धर-धर धरकत, दे मत झोंका भारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!
लचत लंकनहिं संक तुमै कछु हौ बस निपट अनारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै!
दया वारि बरसाय प्रेमघन रोक हिंडोर मुरारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!॥119॥