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कजली / 75 / प्रेमघन

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दूसरी लय

स्थानिक स्त्री भाषा
" मैं तो ठाढ़ी जमुना जल तीर झुलनियाँ में गरद परी' की चाल

आय कजरी कै दिन नगिचान रँगावः पिया लाल चुनरी॥
रेसमी सबुज रंग अँगिया सिआवः,
बेगि बैठि दरजिया की दुकान-रँगावः पिया लाल चुनरी।
लालै रंग अपनौ पगरिया रँगावः;
होइ रँगवौ से रँग कै मिलान-रँगावः पिया लाल चुनरी।
बगिया में झेलुआ डरावः झूलः सँग,
सुनः नई-नई कजरी कै तान-रँगावः पिया लाल चुनरी।
प्रेमघन पिया तरसावः जिनि जिया,
आयल बाटे सजि सावन समान-रँगावः पिया लाल चुनरी।

तीसरी लय
"पैय्याँ लागौं मैं तोरे देवरवा, लेउँ बलैया रे, भैया नैहरे के रहिया बताव" की चाल

काली बदरिया उमड़ि घुमड़ि कै उमड़ि घुमड़ि कै हो,
दैया! बरसन लागली चारिउ ओर।
दसै दिसा मैं दमकि-दमकि कै, दमकि-दमकि कै हो,
दामिनि जियरा डेरावै लागी मोर।
पपिहा पापी पिया-पिया की, पिया-पिया की हो,
दादुर सँग रट लाये बरजोर।
पिया प्रेमघन अजहुँ न आये, अजहुँ न आये हो,
छाये कहाँ करि जियरा कठोर॥128॥

चौथी लय
"कजरी खेलत बीती आधी की रतियाँ, मैं केकरी गोहनवाँ जाउँ रे दुइरंगौ" की चाल

दे नहँकारि कि चलु मिलु पिय से,
हमै न सुहाय, तोरी बात, रे दुइ रंगी॥
नाम सिकोरिकै, भौंहँ मरोरति,
ओठवन से मुसुकात, रे दुई रंगी॥
आये पिया कर करत निरादर,
रूठि गये पछितात, रे दुइ रंगी॥
बरसि बरसि निकरत, पुनि बरसत,
आई भली बरसात, रे दुइ रंगी॥
निसि अँधियरिया मँ चमकै बिजुलिया,
भइलि सोहावनि रात, रे दुइ रंगी॥
लाज सँजोग के सोच बिचार मँ,
बितलि जवानी जात, रे दुइ रंगी॥
प्रेम प्रेमघन सों कर नाहँक,
गुरुजन डर सकुचात, रे दुइ रंगी॥129॥

पाँचवीं लय
'सेंदुरा धोयः धन ऐसे तैसे कजरा कैसे धोयः' की चाल

सावन में मन भावन सों चलिकै मिलु आली।
बंसी बजाय बुलावत है तोहि को बनमाली॥
घेरत आवत अम्बर देखि घटा घन काली।
काहे विलम्ब लगावत है उठर अब हाली॥
फेंकु छड़ा छला चम्पकली बिजुली अरु बाली।
तोहि अभूषन रूप रची विधि नारि निराली॥
काहे सिंगार सिंगारत री करि बीस बहाली।
बैसहिं तू घन प्रेम पिया मन मोहन वाली॥130॥

छठवीं लय
'काले भँवरा रे तैं तो जुलम किहैं' की चाल

कारे बदरा रे जल बरसि रहे।
छन गरजि सुनावैं, दुति दामिनि दिखावैं,
घिरि घिरि आवैं; जनु छिति परसि रहे॥
मोर नाचैं किलकारि, घेरी घटनि निहारि,
पिक पपिहा पुकारि; हिय हरसि रहे।
गावैं कजरी मलार, झूलैं सजिकै सिंगार,
तिय, मोहे रिझवार, छबि दरिस रहे।
तजु मान इहि छन, मिलु सजनी सजन;
बिन तेरे प्रेमघन, पिय तरसि रहे॥131॥