भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कजली 3 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
कहर नजर कै माला जेवर ओठ लाल गुलाल रामा।
हरी बाचउ काला बाबा बरतरवाला रे हरी॥टेक॥
गोरा चिट्टा चेहरा पर बालमक जाँद से आला।
हरी बाल नाग-सा काला घूँघर वाला रे हरी।
जहरीला जिउमार दिये बहु जालिम तिरछी टोपी रामा।
बना फिरहु आफत का परकाला रे हरी।
कठिन कठिन उज्जड़ करि गैलेन केतने जेकरे कारन रामा।
लदि गैलेन कितने डामल के सजा को रे हरी।