कण्ठ की सुराही को
बून्द का अभाव
किस तरियों पेट-घट भरे !
जिह्वा को
होठों तक खींच
नलकों पर जुट आई प्यास
कूओं की
पेन्दियाँ उलीच,
अधुनातन घोर तप करे !
आँखों को
केंचुल से ढाँप
लील रहे मिट्टी का स्वेद
लूओं की
लपटों के साँप,
पग-पग पर आग-सी जरे !
20 मई 1973