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कदम जब डगमगाए रोशनी में / अशोक अंजुम

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कदम जब डगमगाए रोशनी में
बहुत तुम याद आए रोशनी में

तुम्हारी याद की कौंधी यूँ बिजली
हम अरसे तक नहाए रोशनी में

अँधेरों का चलन उनको यूँ भाया
बुलाया, पर न आए रोशनी में

जरूरत थी वहाँ कोई न पहुँचा
दिए तुमने जलाए रोशनी में

खजाने उनके आगे सब थे मिट्टी
वो सिक्के जो कमाए रोशनी में

वो रातों को बने अपना सहारा
जो नगमे गुनगुनाए रोशनी में