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कभी हम भी आकाश में उड़कर / गुलाब खंडेलवाल


कभी हम भी आकाश में उड़कर
सूरज को छूने चले थे, ओ जटायु!
अब हमारे पंख झुलस चुके हैं,
चुक गयी है समस्त प्राणवायु;
लगता है, अब धरती पर सिसकते हुए
बितानी होगी शेष आयु.