भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करम सबई हैं कारे उनके / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
करम सबई हैं कारे उनके
लग रये हैं जैकारे उनके
सबरे गुण्डा चोर लुटेरे
हैं आँखन के तारे उनके
भौत भूभरा मूतत फिर रये
सँगै रैवे वारे उनके
जित्ते चमचा बने फिरत्ते
हो गए वारे न्यारे उनके
सुगम पुलस के ऊँचे अफ़सर
बने फिरत रखवारे उनके