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कवि की प्यास / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Kavita Kosh से
मेरे घर का आँगन धरती
छत उसकी आकाश है;
मेरा अपना और तुम्हारा
एक विश्व-आवास है।
छोटे-बड़े देश कमरे सब
उसी एक आवास के;
जुड़े हुए सब हैं आपस में
दूर हों कि या पास के।
मेरे लिए विश्व यह पूरा
एक वृत्त है, व्यास है॥1॥
एक सूर्य है, एक चाँद है
एक पवन, जल एक है;
एक धूप है, एक चाँदनी
अंतरिक्ष-थल एक है।
एक ऊर्जा से संचालित
जल-थल है, आकाश है॥2॥
अहं भाव से मानवता का
हुआ निरंतर ह्रास है;
बढ़ना ‘हम’ की ओर ‘अह्म’ से
ही मानवी विकास है।
यही मनुजा की प्रगति-यात्रा
का विजयी इतिहास है॥3॥
भारतीय चिंतन ने माना,
‘विश्व एक परिवार’ है,
‘ब्रह्म एक, ब्रह्माण्ड एक, उस
चिंतन का ही सार है।
मेरे कवि की भाव भूमि को
उस चिंतन की प्यास है॥4॥
23.5.92