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काठ का उल्लू / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
पत्थर होती जा रही
जिंदगी को
तराश कर नए/खूबसूरत
रूप में गढ़ने के बहाने
उस पर बेतहाशा चोटें की जाती हैं!
भय से दुबकी हर आस्था को ठेलकर
जबरन नंगी, तेज धार पर
चलाया जाता है, और
उसके लहू से
नई इबारत गढ़ने की मनहूस
कोशिश की जाती है, जिससे
आदमियत को
काठ के उल्लू की भाँति
हर संभव/असंभव
इशारे पर नचाया जा सके!