काली गंगाजली / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
काम नहीं बदले तो केवल
नाम बदलने से क्या होगा?
माना नामों का होता कुछ-कुछ प्रभाव है
कहीं-कहीं कुछ-कुछ बदला दिखता स्व्भाव है;
पर नामों की रही न अब वह साख पुरानी
धर्मदास का आज अधर्मदास है मानी।
जो काली चादर पर रंग सफेद चढ़ा कर
धरती की जागृति को देती सुला, उढ़ा कर;
बदली नहीं चाँदनी वह तो
चाँद बदलने से क्या होगा।1।
धनुष-भंग की कथा सभी की पढ़-सुनी है
सामाजिक तानों-बानों से गई बुनी है;
तब भी थे कुछ जाति-वर्ग के भेद भयंकर
किंतु समन्वय की थी शक्ति हमारे अंदर।
उसी तरह फिर फरसे जिनके आज चमकते
अग्नि-बाण वाणी से जिनके आज बरसते
परशुराम बदले न अगर वे
राम बदलने से क्या होगा?।2।
अब न रहे चाँदनी-सदृश वे निर्मल तीरथ
अब न रहे गंगा लाने वाले भागीरथ;
अब तो हुआ प्रदूषण ही आभूषण उनका
और महंती राज हो गया खरदूषण का।
मुक्ति जहाँ काशी-करवट से है दी जाती
काले धन की गंगाजली चढ़ाई जाती;
धाम न वे बदले तो तीरथ-
नाम बदलने से क्या होगा।3।
मैं देहाती, मुझे याद अपने बचपन की
गाँवों में थी सहज सरलता भोलेपन की
हर कन्या थी बहनी, बूढ़ी-दादी, ताई
बड़ा और बूढ़ा था-काका, बाबा, भाई।
बिटिया बाम्हन, हरिजन की थी सबकी बिटिया।
लेकिन आज बँट गई शंकर की भी बटिया।
ग्राम न वे बदले तो शालि-
ग्राम बदलने से क्या होगा?।4।
27.4.75