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कितना बड़ा काँटा ? / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
घर, शहर, दीवार, सन्नाटा
सबने हमें बाँटा
रात, आधी रोशनी षड्यन्त्र
सोई पसलियाँ जनतंत्र
कितना बड़ा काँटा ?
सख़्त हाथों पर धरी आरी
एक आदमख़ोर तैयारी
गर्दन हिली, चाँटा