भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किससे कोई बात करे / शशि पाधा
Kavita Kosh से
अपनी ढपली, अपने गीत
न कोई साथी ,न कोई मीत
किससे कोई बात करे ?
अधिकारों की हुई नीलामी
छीना झपटी खेल रचा
झाँसे में आ गई ग़रीबी
न छप्पर न खेत बचा
भक्षण–भाषण खूब हुआ
टूटी न शोषण की रीत
किससे कोई बात करे ?
जात धर्म की लेकर आढ़
हिंसा तांडव करती देखी
गूँगी-बहरी खड़ी सियासत
वादों का दम भरती देखी |
आहत-खंडित हुई लेखनी
कोई लिखे न मरहम गीत
किसकी कोई बात करे |
अखबारों में भरी सुर्खियाँ
दुष्कर्मों का ज़ोर हुआ
खबर नवीसी भागे फिरते
जनता में कुछ शोर हुआ
बहस तर्क की लम्बी दौड़ें
अपराधों में उत्सव–जीत
छोड़ो, किसकी बात करें |