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कृपया ठुँग न मारें -2 / नवनीत शर्मा
Kavita Kosh से
वे नफ़ासत से खाते हैं
आवाज़ नहीं करते
मगर न मालूम,तुम्हारे
‘कृपया’ के
‘डेल कारनेगी’ ने
कितने कौव्वों को
अपनी चोंच के लिए
शर्मसार किया है
या कितने चीलों की
चालाकी पर
वार किया है।
मगर लोग शर्तों के काँटों से
छिली पीठ है
लजाते हैं कहते
मगर ढीठ हैं।