भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैद है आदमी का सूरज / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैद है
आदमी का सूरज
आदमी की कोठरी में,
आदमी के साथ।

न देश-बोध होता है जहाँ-
न काल-बोध,
न कर्म-बोध होता है जहाँ-
न सृष्टि-बोध।

न आदमी रहता है
जहाँ आदमी,
न सूरज रहता है
जहाँ सूरज,
हविष्य होते हैं जहाँ दोनों-
आदमी और सूरज
कपाट बंद कोठरी में।

रचनाकाल: १४-१०-१९६९