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कैसे? / अमरजीत कौंके

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मेरी आँखों से
लोग तुम्हारी तस्वीर पहचान लेते हैं
मेरे चेहरे से तुम्हारी मुस्कान
मेरे पैरों से लोग
तुम्हारे घर का रास्ता ढूँढ लेते हैं

मेरी उँगलियों से लोग
तुम्हारे नक्श तराशते
मेरे कानों से
तुम्हारी आवाज़ सुनते
मेरे शब्दों से तुम्हारे नाम की
कविताएँ ढूँढ़ते
मेरे होठों से लोग
तुम्हारे जिस्म की गंध
पहचान लेते हैं

जिस्म मेरा है
लेकिन तुम मेरे जिस्म में
किस-किस तरह से रहती हो।