भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खजूर और अशोक वृक्ष / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
घर में बड़ी होती लड़की
खजूर सी नजर आती है
और गैर कमाऊ पूत
अशोक वृक्ष सा।
दोनों ही
अरमानो के सहारे, आकाश चूमते है,
घर कि दीवारों और स्वम्भी का मन
चिंताओं से ग्रस्त रहता है
जब ये हवा में इधर उधर झूमते है
खजूर, बहू उपयोगी है
वह जानते हुए भी
उसे देहरी के अन्दर उगा नहीं सकते
और अशोक
देहरी के बाहर
सिर्फ शोभा बड़ा सकता है,
किन्तु उससे कुछ पा नहीं सकते
खजूर और अशोक वृक्ष॥