भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेमटा 1 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
कहनवा मानो हो मियाँ टट्टू।
गेंदा खेलो फिरहिरी नचावहु हाथ से छुओ न लट्टू॥
याद आती है हमेंआज शक्ल बावन की।
रूत जो बदली घिरी आती है घटा सावन की॥
कहाता था जमाने में जो, एक दिन हूर का बच्चा।
वही क्या बन गया अब देखिए लंगूर का बच्चा॥
अजब कुदरत खुदा की शान की।
जान की दुश्मन हुई है जानकी॥