भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोट सद्भावनाओं में है / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
खोट सद्भावनाओं में है
कितनी नफरत हवाओं में है
पेड़ से जा लिपटने का दम
प्रेम—पागल लताओं में है
बच रहे हैं जो औलाद से
वो भी ऐसे पिताओं में है
गंध सीमित नहीं फूल तक
गंध चारों दिशाओं में है
व्यक्त होने के पश्चात भी
क्रोध अब तक शिराओं में है
आज तक, मंत्र जैसा असर
मेरी माँ की दुआओं में है
आदमी का तिरस्कार भी
सोची—समझी सजाओं में है