भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख्वाहिशों को किताब कर देते / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख्वाहिशों को किताब कर देते
कुछ तो हम भी जनाब कर देते

मेरी तन्हाइयों को छूकर तुम
जिंदगी को गुलाब कर देते

रात बीती कहाँ नहीं पूछा
वर्ना सारा हिसाब कर देते

तू जो घूँघट जरा पलट देता
हम तुझे लाजवाब कर देते

रास्ते अजनबी हुए सारे
दूर सर से हिजाब कर देते

जुगनुओं ने है चाँदनी चुग ली
आरजू को ही ख्वाब कर देते

छू जो लेते मेरे अहसासों को
राज़ सब बेनक़ाब कर देते

जिंदगी के हर एक लम्हे का
तेरी खातिर हिसाब कर देते

प्यार की शम्मा जो होती रौशन
हम उसे आफ़ताब कर देते