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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 4

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रागआसावरी

सजनी! हैं कोउ राजकुमार |
पन्थ चलत मृदु पद-कमलनि दोउ सील-रुप-आगार ||

आगे राजिवनैन स्याम-तनु, सोभा अमित अपार |
डारौं वारि अंग-अंगनिपर कोटि-कोटि सत मार ||

पाछैं गौर किसोर मनोहर,लोचन-बदन उदार |
कटि तूनीर कसे, कर सर-धनु, चले हरन छिति-भार ||

जुगुल बीच सुकुमारि नारि इक राजति बिनहि सिँगार |
इंद्रनील, हाटक, मुकुतामनि जनु पहिरे महि हार ||

अवलोकहु भरि नैन, बिकल जनि होहु, करहु सुबिचार |
पुनि कहँ यह सोभा, कहँ लोचन, देह-गेह-संसार? ||

सुनि प्रिय-बचन चितै हित कै रघुनाथ कृपा-सुखसार |
तुलसिदास प्रभु हरे सबन्हिके मन, तन रही न सँभार ||