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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 1 से 10 तक /पृष्ठ 3

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( 03 )
  ( राग कल्याण )

रघुपति राजीवनयन, सोभातनु कोटि मयन,
करुनारस-अयन चयन-रूप भूप, माई |
देखो सखि अतुलित छबि, सन्त-कञ्ज-कानन रबि,
गावत कल कीरति कबि-कोबिद-समुदाई ||

मज्जन करि सरजुतीर ठाढ़े रघुबंसबीर,
सेवत पदकमल धीर निरमल चित लाई |
ब्रह्ममण्डली-मुनीन्द्रबृन्द-मध्य इंदुबदन
राजत सुखसदन लोकलोचन-सुखदाई ||

बिथुरित सिररुह-बरूथ कुञ्चित, बिच सुमन-जूथ,
मनिजुत सिसु-फनि-अनीक ससि समीप आई |
जनु सभीत दै अँकोर राखे जुग रुचिर मोर,
कुण्डल-छबि निरखि चोर सकुचत अधिकाई ||

ललित भ्रुकुटि, तिलक भाल, चिबुक-अधर-द्विज रसाल,
हास चारुतर, कपोल, नासिका सुहाई |
मधुकर जुग पङ्कज बिच, सुक बिलोक नीरजपर
लरत मधुप-अवलि मानो बीच कियो जाई ||

सुन्दर पटपीत बिसद, भ्राजत बनमाल उरसि,
तुलसिका-प्रसून-रचित, बिबिध-बिधि बनाई |
तरु-तमाल अधबिच जनु त्रिबिध कीर-पाँति-रुचिर,
हेमजाल अंतर परि तातें न उड़ाई ||

सङ्कर-हृदि-पुण्डरीक निसि बस हरि-चञ्चरीक,
निर्ब्यलीक-मानस-गृह सन्तत रहे छाई |
अतिसय आनन्दमूल तुलसिदास सानुकूल,
हरन सकल सूल, अवध-मण्डन रघुराई ||