भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली पद 71 से 80 तक/ पृष्ठ 5

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(75)

राग कान्हरा
सीय स्वयम्बरु, माई दोउ भाई आए देखन |
सुनत चलीं प्रलदा प्रमुदित मन,
प्रेम पुलकि तनु मनहुँ मदन मञ्जुल पेखन ||

निरखि मनोहरताई सुख पाई कहैं एक-एक सों,
भूरिभाग हम धन्य, आलि ! ए दिन, एखन|
तुलसी सहज सनेह सुरँग सब
सो समाज चित-चित्रसार लागी लेखन ||