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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 6
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हौं रघुबंसमनि को दूत |
मातु मानु प्रतीति जानकि! जानि मारुतपूत ||
मैं सुनी बातैं असैली, जे कही निसिचर नीच |
क्यों न मारै गाल, बैठो काल-डाढ़नि बीच ||
निदरि अरि, रघुबीर-बल लै जाउँ जौ हठि आज |
डरौं आयसु-भङ्गतें, अरु बिगरिहै सुरकाज ||
बाँधि बारिधि, साधि रिपु, दिन चारिमें दोउ बीर |
मिलहिङ्गे कपि-भालु-दल सँग, जननि! उर धरु धीर ||
चित्रकूट-कथा, कुसल कहि सीस नायो कीस |
सुहृद-सेवक नाथको लखि दई अचल असीस ||
भये सीतल स्रवन-तन-मन सुने बचन-पियूष |
दास तुलसी रही नयननि दरसहीकी भूख ||