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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 5
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सुवन समीरको धीरधुरीन, बीर-बड़ोइ |
देखि गति सिय-मुद्रिकाकी बाल ज्यों दियो रोइ ||
अकनि कटु बानी कुटिलकी क्रोध-बिन्ध्य बढ़ोइ |
सकुचि सम भयो ईस-आयसु-कलसभव जिय जोइ ||
बद्धि-बल, साहस-पराक्रम अछत राखे गोइ |
सकल साज-समाज साधक समौ, कहै सब कोइ ||
उतरि तरुतें नमत पद, सकुचात सोचत सोइ |
चुके अवसर मनहु सुजनहि सुजन सनमुख होइ ||
कहे बचन बिनीत प्रीति-प्रतीति-नीति निचोइ |
सीय सुनि हनुमान जान्यौ भली भाँति भलोइ ||
देबि! बिनु करतूति कहिबो जानिहैं लघु लोइ |
कहौङ्गो मुखकी समरसरि कालि कारिख धोइ ||
करत कछू न बनत, हरिहिय हरष-सोक समोइ |
कहत मन तुलसीस लङ्का करहुँ सघन घमोइ ||