भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 4
Kavita Kosh से
(24)
आपनी आपनी भाँति सब काहू कही है|
मन्दोदरी, महोदर, मालवान महामति,
राजनीति पहुँच जहाँलौं जाकी रही है ||
महामद-अंध दसकन्ध न करत कान,
मीचु-बस नीच हठि कुगहनि गही है |
हँसि कहै, सचिव सयाने मोसों यों कहत,
चहै मेरु उड़न, बड़ी बयारि बही है ||
भालु, नर, बानर अहार निसिचरनिको,
सोऊ नृप-बालकनि माँगी धारि लही है |
देखो मालकौतुक, फिपीलिकनि पङ्ख लागो,
भाग मेरे लोगनिके भई चित-चही है ||
"तोसो न तिलोक आजु साहस, समाज-साजु,
महाराज-आयसु भो जोई, सोई सही है |
तुलसी प्रनामकै बिभीषन बिनती करै,
"ख्याल बेधे ताल, कपि केलि लङ्का दही है ||