भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 3

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(23)
रावणकी मन्त्रणा

राग आसावरी
 
आए देखि दूत, सुनि सोच सठ-मनमैं |
बाहर बजावै गाल, भालु कपि कालबस|
मोसे बीरसों चहत जीत्यो रारि रनमैं ||

राम छाम, लरिका लषन, बालि-बालकहि,
घालिको गनत? रीछ जल ज्यों न घनमैं |
काजको न कपिराज, कायर कपिसमाज,
मेरे अनुमान हनुमान हरिगनमैं ||

समय सयानी मृदु बानी रानी कहै पिय !
पावक न होइ जातुधान बेनु-बनमैं |
तुलसी जानकी दिए, स्वामीसों, सनेह किये
कुसल, नतरु सब ह्वैहैं छार छनमैं ||