भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीले बालों से छानता सूरज / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
शोख़ किरण ने
गीले रेशम बालों को जिस लम्हा छुआ
बेसाख्ता हँस दी
पलकों तक आते-आते
सूरज की हँसी भी
गोरी की मुस्कान की सूरत
सात रंग में भीग चुकी थी