भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग्रीष्म : एक कविता / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
झंकृत होती हैं
नाड़ियाँ
शिराओं का बढ़ जाता है चाप
तापमापी करता दर्ज़
तापमान
अड़तालीस डिग्री सैलसियस
कविताऍ होती वाष्पित जल-सी
उत्सर्जित होती
स्वेद-सी
फूटती मन और शरीर से
फैल जाती हैं
ब्रह्मांड में