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चढु-चढु ए सुगना गगन गम्हीर / लछिमी सखी
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चढु-चढु ए सुगना गगन गम्हीर।।
उ जे सीतल मंद सुगंध समीर।
जाहाँ झर-झर बहत धीरे धीर।।
चलु सखी पनिया भरि लेहु नीर।
सुखमन संगम सरयुग तीर।।
ससुरा से पतिया ले अइले महाबीर।
जहाँ बसे सतगुरु साहेब कबीर।।
लछिमी सखी चारो जुग कर पीर।
लेहु सखी कसमस अँगिया पहीर।।