भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चम्पई सीढ़ियाँ / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झील की हिमकरी छाँह-सी
तैरती आँख की
बेकली ।

हिल उठीं चम्पई सीढ़ियाँ
रूप दुहरा बिखरने लगा
हर दिशा में धुले अंग से
मोतिया रंग झरने लगा

काँपते कूल पर धर चरण
ज्योत्सना डुबकियाँ
ले चली ।