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चाँद तारे ख़्वाब में आते नहीं / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
चाँद तारे ख़्वाब में आते नहीं
हम भी छत पर रात में जाते नहीं
वो जमाना था कि बातें थीं गुज़र
आज हम भी वैसे बतियाते नहीं
वो पुरानी धुन अभी तक याद है
पर हुआ है यों कि अब गाते नहीं
ढूंढ़ते हैं मिल भी जाता है मगर
चाहिए जो बस वही पाते नहीं
जाने क्या मंज़र दिखाया आपने
अब नज़ारे कोई बहलाते नहीं