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चिड़कली अर रूंख / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
बिजळी रै
खंभै माथै
चिडक़ली
घास फूस भेळा कर’र
बणायौ आपरौ आलणौ
रूंख निरखै
मुळकै अर सोचै
कै चिडक़ली
बावळी हुयगी दीसै
पण
अेक दिन
कटतो-बढतौ
अर आंसू टळकांवतौ रूंख
निरखै हो
चिडक़ली रै बचियां नै
जिका
भरै हा उडारी
आभै में
च्यारू चफेर।