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चिड़िया / अर्चना लार्क
Kavita Kosh से
चिड़िया के चंचु से
छूट जाता है तिनका
एक गीत गाती है
उड़ती फिरती है
शाम होते पक्षी जब घर को लौटते हैं
देखती है
और उम्मीद रखती है
एक दिन उठा लेगी तिनका
बना लेगी घोंसला
घर-संसार से अधिक
वो गीत के बारे में सोचती है
बनाती है जीवन-प्रेम का संगीत
चिड़ियों के बीच
वो चिड़ियों जैसी
नहीं रह पाती है ।