भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

च्यार अचपळा चितराम (1) / विजय सिंह नाहटा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कठै ई दूर बिरखा है
डूंगर री गम्योड़ी चोटी सी
धवळा बादळ री हलचल
अंतहीण ओ दीठाव
सूंत‘र ले जावै सम्मोहण में
ऊपर चोटी माथै
अरे! ओ कैड़ो उच्छाव है
उपराड़ै रो।