Last modified on 21 अप्रैल 2018, at 12:21

छाया गीत / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

शहर भर की सारी छायाएँ
झील में आकर सो गईं
अब रात की तरह
ये झील नीम अंधेरी
और आसमान की तरह शांत
किनारे पर कहीं
एक बड़ा–सा मेंढक टर्राता है
जैसे रेडियो में खरखराहट
तारों पर से
बहुत धीमे गुज़रती है एक नाव
उसकी तलहटी में बजता पानी
‘छाया गीत’ की तरह
सुनाई देता है