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ज़माने में बहुत तन्हा था वो / विनोद तिवारी

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ज़माने में बहुत तन्हा था वो
कि टूटा डाल से पत्ता था वो

पुलिसथाने में पक्का दर्ज़ था
बहुत मासूम था कच्चा था वो

कि उसका भाग्य थीं गुमनामियाँ
समंदर में महज़ क़तरा था वो

किसी को लूटता था रोज़ ही
किसी के हाथ ख़ुद लुटता था वो

पड़ा था वो सड़क पर भीड़ थी
किसी का कुछ नहीं लगता था वो