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ज़िन्दगी ने हमें गुदगुदाया भी था / कांतिमोहन 'सोज़'

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ज़िन्दगी ने हमें गुदगुदाया भी था ।
हाँ रुलाया था उसने हँसाया भी था ।।

हाँ वो नग़मा नहीं दर्द फिर दर्द था
उसको हमने मगर गुनगुनाया भी था ।

जो कड़ी धूप में हँस के रुख़्सत हुए
उन रफ़ीक़ो में खुद मेरा साया भी था ।

तुझसे कोई तवक़्क़ो नहीं थी मगर
ज़िन्दगी मैं तेरे पास आया भी था ।

इश्क़ भी सिर्फ घाटे का सौदा न था
कुछ गँवाया था हमने तो पाया भी था ।

आने-जाने का फिर कुछ न मतलब रहा
यूँ तो कोई गया कोई आया भी था ।

अब छुपाना है क्या अब तो सच बोल दे
सोज़ वो तेरे दिल में समाया भी था ।।