जाने क्यों मुझसे वह ख़फा निकली
ज़िंदगी मुझसे दूर जा निकली
एक उसका ही तो सहारा था
आख़िरश वह भी बेवफ़ा निकली
छल किया मुझसे मेरी आँखो ने
जो मुहब्बत थी वह सज़ा निकली
उसके किरदार में बनावट थी
हर अदा उसकी बस अदा निकली
इस क़दर तंग आ गया हूँ मैं
दर्द निकला न कुछ दवा निकली
सारे जंगल में इक ख़मोशी थी
शाख़ टूटी तो इक सदा निकली
लाख शिकवे शिकायतें थीं मगर
हक़ में उसके तो बस दुआ निकली