भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने वाले की याद में... / पल्लवी मिश्रा
Kavita Kosh से
कल तक बिस्तर से जो उठ न पाया
आज दुनिया से उठकर चला गया।
ईश्वर तेरी मायानगरी में देखो
इंसां फिर से छला गया।
रिश्ते-नातों का हर बन्धन
इक झटके में ही तोड़ गया वह;
क्या अपने? क्या बेगाने? सबको
रोता-बिलखता छोड़ गया वह।
पल, क्षण, दिन, सप्ताह, महीने
और बरस बीतते जाएँगे;
पर एक झलक पाने को उसकी
ये नैन तरस रह जाएँगे।
फिर भी जिसने जीवन दान दिया है,
ऋण उसका चुकाना होगा;
उसकी दी हुई नेमतों के बदले
यह एक सितम उठाना होगा।
ईश्वर की दुनिया में भी
इंसानों की कमी है शायद;
लेकिन तुझको पास बुलाकर
उसकी आँखों में भी नमी है शायद।