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जीवित रहने दो मरूथल को / भरत ओला
Kavita Kosh से
आग नही है
चूल्हे में
और नही
पलींडे<ref>घर का वह स्थान जहां पीने के पानी के पात्र रखे जाते है</ref> में पानी
सबकी जेबें
माचिस वाली
बोतल-बोतल
बंद पानी
हम दोनों का
नाम नहीं है
भीड़ जुटी है
अनजानी
सूखी नदियां
सूखे पोखर
सूख गया है
दिल दरिया
जीवित रहने दो
मरूथल को
शायद उग आए कभी
सुन्दर सा इक मरगोजा<ref>रेगिस्तान में उगने वाली एक वनस्पति</ref>
शब्दार्थ
<references/>