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जैसे कुछ हुआ ही न हो / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
कितने दिन बाद मिले
फिर भी ख़ामोश रहे
जैसे कुछ हुआ ही न हो I
चुप्पी ने छीन लिए
वे क्षण बातूनी,
उग आये इर्द-गिर्द
पंजे नाखूनी,
अहमों के प्रेत जगे
संज्ञा पर
समासीन हो I
कुछ टूटे मोर पंख
हाथ में संभाले,
भटक रहे हैं अब तक
सपनों के ग्वाले;
भावुकता कि गायें
बैठी हैं आज दीन हो I
इन ठहरे रिश्तों पर
काई की परतें,
डुबो गई गहरे में
चुल्लू भर शर्तें;
मौसम के मल्लाहों!
कैसे तुम पर यकीन हो