जैसे मूसा थान बेसकीमती कतर जात ,
कौवाहू बिगारि जात कलस के नीर को ।
साँप डसि जात विष चढ़ि जात रोम रोम ,
कुत्ता काटि खात राह चलत फकीर को ।
मुरली कहत जैसे बिच्छू डँक मारि जात ,
कछू ना सोहात व्यथा करत सरीर को ।
वैसे ही चुगलखोर नाहक परायो काम ,
देत हैँ बिगार ना डेरात रघुबीर को ।
मुरली का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।