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झरती पत्तियों ने / सुरेश ऋतुपर्ण
Kavita Kosh से
झरती पत्तियों ने
अपनी झरझराहट से
हमें बताया —
कल को पाने के लिए
देना पड़ता है अपना आज
और अपनी मरमराहट में
हमें समझाया —
जब दो अपने को तो
दो हृदय के सब रंगों के साथ
निष्काम समर्पित हुआ जो हर बार
उसी ने पाया वसंत का प्यार
बार-बार !