Last modified on 13 अगस्त 2008, at 23:37

झलकता रूप / महेन्द्र भटनागर

शशि पर घूँघट बादल का है !

घूँघट इतना झीना जिसमें
है शरमाया मुख प्रतिबिम्बित,
दो पागल कजरारी अँखियाँ
संधान किये नभ पर अंकित,

सीमित रह न सका किंचित भी
उभर-उभर मधु-घट छलका है !

इतना छलका कि सितारों-से
छींटे उड़-उड़ कर फैल गये,
मानों उर से बाहर होकर
बिखरे हों अगणित भाव नये,

या स्वर्ण-अलंकृत छोर गगन
में फहराते आँचल का है !