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टुटि गेला धिरजा मोर / जयराम दरवेशपुरी

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सुधिया के उमड़ऽ हइ लोर
टूटि गेलइ धिरजा मोर
भइया हो कनहूँ न लउकऽ हइ इंजोर

चान सुरूज के हइ खउँतल नजरिया
कहाकुप गढ़ऽ हइ कथा नित करिया
कत्ते भेलइ हिरदा कठोर

हँसि-हँसि मनमां के थाहऽ हइ बतिया
खिलिया उड़ावइ रोज दुबरा के पतिया
दुख फइलि छितरइ अछोर

जिनगी भर जोति-कोड़ि करजा चुकइ लूं
मटिये में रहि-रहि उमिर बितइलूं
टभकइ बेआइया से गोड़

उभरल देहिया में सूखल ठठरिया
सपना के आबत दुअरिया
अँखिया में धुरिया दे पोर

कार घटा फार तनि हुलकल इंजोरिया
तनि-तनि लउकऽ लगल भूलल डगरिया
सहमल जुलमी चटोर।