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ठुमक-ठुमककर चलें हवाएं / शकुंतला कालरा
Kavita Kosh से
झूले पलना मेरी गुड़िया,
हौले-हौले आना निंदिया।
गोरे मुख पर काली अलकें,
थकी-थकी-सी भारी पलकें।
झूले पलना मेरी गुड़िया,
हौले-हौले आना निंदिया।
धरती सोई, नभ भी सोया,
सागर भी सपनों में खोया।
झूले पलना मेरी गुड़िया,
हौले-हौले आना निंदिया।
ठुमक-ठुमककर चलें हवाएं,
मीठी-मीठी लोरी गाएं।
झूले पलना मेरी गुड़िया,
हौले-हौले आना निंदिया।