तब हम एक भये रे भाई।
मोहन मिल साँची मति आई॥टेक॥
पारस परस भये सुखदाई।
तब दूनिया दुरमत दूरि गमाई॥१॥
मलयागिरि मरम मिल पाया॥
तब बंस बरण-कुल भरग गँवाया॥२॥
हरिजल नीर निकट जब आया।
तब बूँद-बूँद मिल सहज समाया॥३॥
नाना भेद भरम सब भागा।
तब दादू एक रंगै रँग लागा॥४॥